नमस्कार दोस्तों आज हम इस पोस्ट के माध्यम से बीकानेर जिले के दर्शनीय स्थल व उसकी महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त करेंगे, भौगोलिक स्थिति, विधानसभा क्षेत्र, बीकानेर जिले का मानचित्र, बीकानेर जिले जिले की सीमा, District Map , District History Culture & बीकानेर जिले के बारे में इसका इतिहास व् जिला दर्शन Geography का विस्तार से अध्ययन करेंगे।
Table of Contents
Bikaner District विधान सभा सीटे
Bikaner जिले का भौगोलिक-प्रशासनिक परिचय
Bikaner District History Culture & Geography || Bikaner Jila Darshn 2024
करणी माता का मंदिर (देशनोक, बीकानेर):
- यह मंदिर चारण समाज की कुल देवी मानी जाती है।
- इसे दाढ़ी मूंछ वाली देवी के रूप में भी जाना जाता है।
- यहाँ सफेद चूहे (काबा) पूजे जाते हैं और इन्हें स्वतंत्र रूप से घूमने दिया जाता है।
- प्रतीक चिह्न के रूप में सफेद चील का चित्रण किया जाता है।
- पुजारी बारीदार होते हैं, जो देपावत वंश से संबंधित होते हैं।
बीकानेर के प्रमुख मंदिर:
- पूर्वोश्वर महादेव मंदिर, रतन बिहारी मंदिर, लक्ष्मीनारायण मंदिर, भैरूजी मंदिर और हेरम्ब गणपति मंदिर बीकानेर के महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल हैं।
- हेरम्ब गणपति मंदिर की विशेषता यह है कि इसमें गणेश जी मूषक पर नहीं, बल्कि शेर पर सवार हैं।
भाण्डाशाह जैन मंदिर:
- यह मंदिर जैन भाण्डाशाह द्वारा बनवाया गया था।
- इसकी नींव में घी का प्रयोग किया गया है, जो इसे स्थापत्य के दृष्टिकोण से विशिष्ट बनाता है।
- यहाँ जैन धर्म के पाँचवे तीर्थंकर सुमित नाथ की मूर्ति प्रतिष्ठित है।
रम्मत लोकनाट्य:
- रम्मत लोकनाट्य की उत्पत्ति जैसलमेर से हुई और यह बीकानेर में आचार्यों के चौक में प्रमुख रूप से आयोजित होता है।
- पाटा संस्कृति भी यहाँ की लोक कला का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
मथैरणा कला:
- यह कला बीकानेर में जैन समुदाय से संबंधित है और विशिष्ट चित्रकला का एक रूप है।
उस्ताकला / मुनव्वती कला:
- यह कला ऊँट की खाल पर स्वर्णिम चित्रकारी करने के लिए प्रसिद्ध है।
- हिसामुद्दीन उस्ता जैसे प्रसिद्ध कलाकारों ने इसे नया आयाम दिया और 1986 में उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से नवाजा गया।
- इस कला का सर्वाधिक विकास अनूप सिंह के काल में हुआ।
देवीकुण्ड छतरियाँ
- यह बीकानेर के राजाओं की छतरियाँ हैं, जो उनकी याद में बनाई गई थीं।
- प्रथम छतरी: कल्याणमल की छतरी।
- अन्तिम छतरी: गंगासिंह की छतरी।
जूनागढ़ दुर्ग
- इस दुर्ग का निर्माण रायसिंह ने 1589 से 1593 के बीच किया था।
- यहाँ रायसिंह की प्रशस्ति उल्लेखित है।
- यह दुर्ग पहली बार लिफ्ट का प्रयोग करने के लिए प्रसिद्ध है।
- इसे "जमीन का जेवर" और "रातीघाटी" के नाम से भी जाना जाता है।
- दुर्ग में 33 करोड़ देवी-देवताओं का मंदिर स्थित है।
- अनूप महल भी इस दुर्ग में स्थित है।
लालगढ़ पैलेस
- इस पैलेस का निर्माण गंगासिंह ने अपने पिता लालसिंह की स्मृति में किया था।
प्रमुख हवेलियाँ
- बच्छावतों की हवेली
- डागा की हवेली
- कोठारी हवेली
- मोहता की हवेली
अलखिया सम्प्रदाय
- मुख्य पीठ: बीकानेर में स्थित है।
- संस्थापक: लालगिरी।
- ग्रंथ: अलख स्तुति प्रकाश।
वीर बिग्गाजी
- वीर बिग्गाजी का जन्म रीड़ी गांव (डूंगरगढ़) में हुआ था।
- वह जाखड़ समाज के कुल देवता हैं।
- मंदिर: बीकानेर में स्थित है।
संत हरिरामदास जी
- मुख्य पीठ: सिंहथल, बीकानेर।
- गुरु: संत श्री जैमलदास जी।
- वह रामस्नेही सम्प्रदाय से संबंधित थे।
खनिज:
- जिप्सम – जामसर, बिसरासर, हरकासर।
- बेंटोनाइट – विभिन्न स्थानों से प्राप्त।
- कोयला – पलाना, बरसिंघसर।
उद्योग:
- एशिया की सबसे बड़ी ऊनी मंडी – बीकानेर।
- केन्द्रीय ऊँट अनुसंधान केन्द्र – जोहड़बीड़, बीकानेर।
- खजूर अनुसंधान केन्द्र – बीकानेर।
- ऊन विश्लेषण प्रयोगशाला – बीकानेर।
झीलें:
- गजनेर झील – यह झील दर्पण की तरह चमकती है, और इसमें रेत का तीतर (भट्ट तीतर) बटबट पक्षी मिलते हैं। इसे महाराजा गजसिंह ने बनवाया था। यह गजनेर अभयारण्य के पास स्थित है।
- लूणकरणसर झील – यह खारे पानी की झील है।
- कोलायत झील – मीठे पानी की झील है, जिसमें 52 घाट बने हुए हैं और यह दीपदान की परंपरा के लिए प्रसिद्ध है। इस झील के किनारे कपिल मुनि का मंदिर भी है। यहां कार्तिक पूर्णिमा के मेले का आयोजन होता है।
प्रमुख परियोजनाएँ:
- कंवरसेन लिफ्ट नहर – इसे बीकानेर की जीवन रेखा कहा जाता है।
- झज्जर – राज्य की पहली निजी क्षेत्र में स्थापित होहोबा/जोबोबा परियोजना।
- जैतून रिफाइनरी – लूणकरणसर, बीकानेर में स्थापित।
इतिहास
राव बीका (1465-1504 ई.)
- राव जोधा का पांचवां पुत्र।
- 1465 ई. में बीकानेर की नींव रखी।
- बीकानेर राठौड़ के संस्थापक।
- 12 अप्रैल 1488 को आखातीज के दिन बीकानेर बसाया गया।
राव लूणकरण (1505-1526)
- बीठू सूजा द्वारा लिखित ग्रंथ ‘राव जैतसी रो छंद’ में लूणकरण को ‘कलयुग का कर्ण’ कहा गया।
राव जैतसी (1526-1542)
- पहौबा का युद्ध (1541-42) जैतसी और मालदेव के सेनापति जैता और कूंपा के मध्य हुआ, जिसमें मालदेव की विजय हुई।
राव कल्याणमल (1542-1574)
- 1570 में अकबर ने नागौर दरबार लगवाया, जिसमें कल्याणमल उपस्थित हुए और अकबर की अधीनता स्वीकार की।
- गिरि सुमेल युद्ध में शेरशाह सूरी का साथ दिया।
पृथ्वीराज राठौड़
- कल्याणमल के पुत्र, पीथल के नाम से प्रसिद्ध।
- “वेलि क्रिसन रुकमणी री” ग्रंथ के रचनाकार, जिसे दुरसा आढ़ा ने ‘पाँचवां वेद’ और ‘उन्नीसवां पुराण’ कहा।
महाराजा रायसिंह (1574-1612 ई.)
- मुगल दरबार का स्तंभ और राजपूताने का कर्ण।
- ‘भागवत पुराण’ का चित्रण बीकानेरी चित्रकला से हुआ।
महाराजा कर्णसिंह (1631-1669 ई.)
- 1644 में मतीरे की राड़ युद्ध हुआ, जिसमें कर्णसिंह की विजय हुई।
- औरंगजेब ने उन्हें ‘जांगलधर बादशाह’ की उपाधि दी।
- दरबारी कवि गंगाधर मैथली थे, जिनकी रचना ‘कर्णभूषण’ प्रसिद्ध है।
महाराजा अनूपसिंह (1669-1698 ई.)
- औरंगजेब ने उन्हें ‘माही मरातीव’ की उपाधि दी।
- प्रमुख ग्रंथों में ‘अनूप विवेक’, ‘गीत गोविन्द टीका’, ‘कामप्रबोध’, ‘अनुपोदया’ शामिल हैं।
जोरावर सिंह (1734-1746)
- हुरड़ा सम्मेलन में भाग लिया (1734 में)।
- प्रमुख ग्रंथ ‘वैद्यसार’ और ‘पूजा पद्धति’।
महाराजा गजसिंह (1746-1787)
- मुहम्मदशाह ने उन्हें ‘श्रीराज राजेश्वर महाराजाधिराज’ की उपाधि दी।
महाराजा सूरतसिंह (1787-1828)
- 1805 में भटनेर दुर्ग पर आक्रमण किया और इसे हनुमानगढ़ नाम दिया।
- 1818 में अंग्रेजों से सहायक संधि की।
महाराजा रतनसिंह (1828-1851)
- बीकानेर में सती प्रथा और कन्या वध पर रोक लगाने का प्रयास किया।
महाराजा सरदार सिंह (1851-1872)
- 1857 की क्रांति के दौरान बीकानेर का शासक था और अंग्रेजों का साथ देने के लिए पंजाब और हरियाणा गया।
महाराजा डूंगरसिंह (1872-1887)
- इनके समय में बीकानेरी भुजिया प्रसिद्ध हुआ।
महाराजा गंगासिंह (1887-1943)
- 13 वर्ष की आयु में शासक बने।
- 1896-97 में गंगा रिसाल का गठन किया और 1919 में वर्साय की संधि में भाग लिया।
- प्रथम विश्व युद्ध में अंग्रेजों का साथ दिया और 1930-32 में गोलमेज सम्मेलन में भाग लिया।
महाराजा सार्दुल सिंह (1943-1947)
- बीकानेर के अंतिम राजा, जिन्होंने 30 मार्च 1949 को बीकानेर को राजस्थान में शामिल किया।
बीकानेर प्रजामण्डल (1936)
- मघाराम वैद्य द्वारा स्थापित।
- 1937 में लक्ष्मीदेवी आचार्य द्वारा कोलकाता में बीकानेर प्रजामण्डल की स्थापना की गई।
अन्य महत्वपूर्ण
भट्टापीर का उर्स – गजनेर (बीकानेर)
- भट्टापीर का उर्स हर साल गजनेर में मनाया जाता है।
चनणी चेरी मेला – देशनोक (बीकानेर)
- यह मेला देशनोक में आयोजित होता है, जो प्रसिद्ध करणी माता मंदिर के पास स्थित है।
न्यूनतम नदियों वाला संभाग – बीकानेर संभाग
- बीकानेर संभाग राजस्थान के अन्य संभागों की तुलना में कम नदियों वाला क्षेत्र है।
डाडाथोरा – लघु पाषाणकालीन अवशेष
- डाडाथोरा में लघु पाषाणकालीन अवशेष मिले हैं, जो प्राचीन मानव सभ्यता का प्रमाण हैं।
जामसर (बीकानेर) – जिप्सम की सबसे बड़ी खान
- जामसर में जिप्सम की सबसे बड़ी खान स्थित है, जो बीकानेर के प्रमुख खनिज संसाधनों में शामिल है।
बालक साइक्लिंग अकादमी – बीकानेर
- बीकानेर में बालकों के लिए साइक्लिंग अकादमी की स्थापना की गई है, जो खेलों में प्रेरणा देती है।
उरमूल ट्रस्ट – 1983 ई. में स्थापना
- उरमूल ट्रस्ट की स्थापना 1983 में हुई, जो शिक्षा और समाजिक विकास के क्षेत्र में काम करता है।
जैन मन्दिर भाण्डाशाह
- लूणकरण के समय भाण्डा शाह द्वारा निर्मित यह जैन मंदिर ऐतिहासिक और वास्तुकला की दृष्टि से महत्वपूर्ण है।
लक्ष्मीनाथ मन्दिर – बीकानेर
- यह संगमरमर और लाल पत्थर से बना एक प्रसिद्ध मंदिर है, जो बीकानेर में स्थित है।
शिक्षा विभाग – बीकानेर 1950 में स्थापना
- बीकानेर में शिक्षा विभाग की स्थापना 1950 में की गई थी, जो राज्य में शिक्षा के प्रचार-प्रसार में योगदान देता है।
महाजन फील्ड फायरिंग रेंज – बीकानेर
- बीकानेर में स्थित महाजन फील्ड फायरिंग रेंज भारतीय सेना के लिए एक महत्वपूर्ण प्रशिक्षण स्थल है।
शार्दुल स्पोटर्स स्कूल – बीकानेर
- यह राज्य का पहला स्पोटर्स स्कूल है, जो बीकानेर में स्थापित हुआ।
बेर एवं खजूर का सर्वाधिक उत्पादन
- बीकानेर में बेर और खजूर का सर्वाधिक उत्पादन होता है, जो कृषि क्षेत्र के लिए महत्वपूर्ण है।
बीकानेर रियासत में आलमशाही तथा गजशाही सिक्के प्रचलित थे
- बीकानेर रियासत में आलमशाही और गजशाही सिक्के प्रचलित थे, जो ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण हैं।
बीकानेरी भुजिया
- बीकानेर की प्रसिद्ध भुजिया विश्वभर में लोकप्रिय है, जो एक विशिष्ट और स्वादिष्ट स्नैक है।
नाल एयरपोर्ट – बीकानेर
- नाल एयरपोर्ट बीकानेर में स्थित है और यह वाणिज्यिक उड़ानों के लिए एक महत्वपूर्ण हवाई अड्डा है।
कान्ता खतूरिया – राजस्थान लोक सेवा आयोग की प्रथम महिला सदस्य
- कांता खतूरिया राजस्थान लोक सेवा आयोग की पहली महिला सदस्य थीं।
जूनागढ़ प्रशस्ति
- जूनागढ़ के द्वार पर स्थित यह प्रशस्ति, जिसे रायसिंह प्रशस्ति भी कहा जाता है, ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है।
विमला कौशिक – पानी वाली बहन जी के नाम से प्रसिद्ध
- विमला कौशिक को “पानी वाली बहन जी” के नाम से जाना जाता है, जो अपनी सामाजिक सेवाओं के लिए प्रसिद्ध हैं।