Chitaudgarh District History Culture & Geography || Chitaudgarh Jila Darshn

नमस्कार दोस्तों आज हम इस पोस्ट के माध्यम से चित्तौड़गढ़ जिले के दर्शनीय स्थल व उसकी महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त करेंगे, भौगोलिक स्थिति, विधानसभा क्षेत्र, चित्तौड़गढ़ जिले का मानचित्र, चित्तौड़गढ़ जिले जिले की सीमा, District Map ,  District History Culture & चित्तौड़गढ़ जिले के बारे में इसका इतिहास व् जिला दर्शन  Geography का विस्तार से अध्ययन करेंगे।

 

चित्तौड़गढ़, राजस्थान का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण शहर है, जो चित्तौड़गढ़ जिले का मुख्यालय भी है। यह किला, जो चित्तौड़गढ़ किला के नाम से जाना जाता है, UNESCO विश्व धरोहर स्थल है और मवाड़ के इतिहास का एक प्रमुख प्रतीक है। यहाँ के किले में महल, मंदिर, दरवाजे और जलाशय जैसे अनेक ऐतिहासिक स्थल स्थित हैं। चित्तौड़गढ़ किला की विशेषता उसकी विशालता और उसकी ऐतिहासिक महत्ता में है, जहाँ रानी पद्मिनी और महाराणा प्रताप जैसी ऐतिहासिक शख्सियतों से जुड़ी कथाएँ भी प्रचलित हैं। यह स्थल पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है|

District विधान सभा सीटे

बेंगू
 
चित्तौड़गढ़
 
कपासन
 
निंबाहेड़ा

जिले का भौगोलिक-प्रशासनिक परिचय

चित्तौड़गढ़: परिचय

  • वाहन कोड: RJ-09
  • शुभंकर: चौमंगा
  • उपनाम:
    • राजस्थान का गौरव
    • राजस्थान का दक्षिणी-पूर्वी प्रवेश द्वार
    • शक्ति व भक्ति की नगरी
    • मालवा का प्रवेश द्वार
    • सीमेन्ट नगरी

प्राचीन नाम

  • चित्तौड़गढ़ को प्राचीनकाल में चित्रकूट कहा जाता था।
  • यहां से राजस्थान के दो सबसे प्राचीन अभिलेख (नांती और घाघुड़ी) प्राप्त हुए हैं।

मुख्य स्थानों की विशेषताएं

रावतभाटा

  • भारत का दूसरा आणुविक केंद्र (1972-73) कानाे की सहायता से स्थापित।
  • यहां भारी पानी संयंत्र स्थित है।
  • इसे “राजस्थान की अणु नगरी” भी कहा जाता है।

भूपाल सागर

  • मेवाड़ शुगर मिल्स लि. (1932): राजस्थान का एकमात्र ईनाम क्षेत्र में स्थापित चीनी का कारखाना।

निंबाहेड़ा

  • यहां वैदिक विश्वविद्यालय स्थापित है।

बेंगू

  • किसान आंदोलन (1921-23): रामनारायण चौधरी के नेतृत्व में हुआ।

भैंसरोडगढ़

  • “राजस्थान का वैलटौर” कहलाता है।
  • कर्नल टॉड ने इसे “अभेद दुर्ग” कहा।
  • चम्बल नदी पर स्थित चुलिया जलप्रपात यहां का मुख्य आकर्षण है।

बड़ी सादड़ी

  • राम-रावण मेला यहां का प्रमुख आयोजन है।
  • झालर बोड़ा/बालाजी: महाराणा प्रताप द्वारा युद्ध में मदद करने वाले योद्धाओं को राज्य चिह्न भेंट किया गया।

बस्सी

  • काष्ठ शिल्प के लिए प्रसिद्ध।
  • बस्सी अभयारण्य (1988): वन्यजीवन का संरक्षण क्षेत्र।

कपासन

  • नारियाली के खोल की चूड़ियां यहां प्रसिद्ध हैं।
  • हिन्दुस्तान जिंक लिमिटेड का दूसरा जिंक स्मेल्टर प्लांट यहीं स्थापित है।

आकोला

  • गाई छाप और दाबू प्रिंट के लिए प्रसिद्ध।

मण्डफिया

  • सांवलिया जी का मंदिर: जिसे अप्रति मंदिर भी कहा जाता है।

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कला एवं संस्कृति

सांवलिया सेठ का मेला

  • स्थान: मण्डफिया, चित्तौड़गढ़।
  • सम्बंध: वल्लभ संप्रदाय।
  • मूर्ति: भगवान कृष्ण की काले पत्थर की मूर्ति स्थापित है।
  • विशेषता: श्रद्धालुओं के लिए यह स्थल धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखता है।

मातृकुण्डिया का मेला

  • स्थान: राशमी, चित्तौड़गढ़।
  • समय: वैशाख पूर्णिमा।
  • विशेषता: इसे “मेवाड़ का हरिद्वार” और “राजस्थान का हरिद्वार” कहा जाता है।
  • पौराणिक सम्बंध: पाण्डवों के समय से जुड़ा।
  • ऐतिहासिक घटना: राशमी से मोतीलाल तेजावत ने एकी आंदोलन की शुरुआत की।

जौहर मेला

  • स्थान: चित्तौड़गढ़ दुर्ग।
  • समय: चैत्र कृष्ण एकादशी।
  • महत्व: रानी पद्मिनी द्वारा 1303 ई. में किए गए जौहर की स्मृति में आयोजित।
  • विशेषता: यह राजस्थान के ऐतिहासिक जौहरों में प्रमुख है।

आवरी माता का मंदिर

  • स्थान: निकुम्भ, चित्तौड़गढ़।
  • विशेषता: लकवा पीड़ित मरीजों के इलाज के लिए प्रसिद्ध।
  • अन्य नाम: असावरी माता का मंदिर।

मीरा बाई का मंदिर

  • शैली: इण्डो-आर्य (नागर शैली)।
  • महत्व: भक्तिकाल की महान संत मीरा बाई की भक्ति को समर्पित।

श्रृंगार चंवरी मंदिर

  • निर्माण काल: राणा कुंभा के शासन में।
  • निर्माता: जैन वेलाक।
  • महत्व:
    • राणा कुंभा की पुत्री रमाबाई की चंवरी।
    • मेवाड़ के राजाओं का राजतिलक यहीं होता था।

फतेह प्रकाश संग्रहालय

  • स्थान: चित्तौड़गढ़।
  • महत्व: यह चित्तौड़ का सबसे बड़ा संग्रहालय है।
  • संग्रह: ऐतिहासिक शस्त्र, मूर्तियां, और मेवाड़ की विरासत।

चित्तौड़गढ़ दुर्ग (चित्तौड़गढ़ फोर्ट)

  • उपनाम:
    • राजस्थान का गौरव।
    • दुर्गों का सिरमौर।
    • राजस्थान का दक्षिणी द्वार।
    • मालवा का प्रवेश द्वार।
  • निर्माण: कुमारपाल प्रवनज के अनुसार, चित्रांग मौर्य द्वारा।
  • विशेषता:
    • राजस्थान का पहला और सबसे बड़ा लिविंग फोर्ट।
    • विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता।
    • इतिहास में तीन जौहर और कई युद्धों का साक्षी।

मुख्य दर्शनीय स्थल

1. कुंभश्याम मंदिर (सूर्यमंदिर)

  • चित्तौड़ दुर्ग के अंदर स्थित है।
  • वास्तुकला और धार्मिक महत्व के लिए प्रसिद्ध।

2. कालिका माता मंदिर

  • चित्तौड़गढ़ का प्राचीन मंदिर।
  • देवी कालिका को समर्पित।

3. समिद्धेश्वर मंदिर

  • चित्तौड़ दुर्ग में स्थित है।
  • शैव संप्रदाय का प्रमुख धार्मिक स्थल।

4. विजय स्तम्भ (चित्तौड़)

  • निर्माण: महाराणा कुम्भा (1440-1448 ई.)।
  • शिल्पी: जैता, नापा, पोमा, पूंजा।
  • विशेषताएं:
    • 9 मंजिला, ऊंचाई 122 फीट।
    • “भारतीय मूर्तिकला का विश्वकोष” कहा जाता है।
    • राजस्थान पुलिस और माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, अजमेर का प्रतीक चिह्न।
    • डाक टिकट जारी: 15 अगस्त 1949 (राजस्थान की पहली इमारत)।
    • कर्नल टॉड ने इसे कुतुब मीनार से श्रेष्ठ बताया।
    • फर्ग्यूसन ने इसकी तुलना रोम के टार्जन टावर से की।
    • तीसरी मंजिल पर अरबी में “अल्लाह” 9 बार लिखा हुआ।

5. भैंसरोड़गढ़

  • उपनाम: राजस्थान का वैल्लोर।
  • राजस्थान का दूसरा जल दुर्ग।
  • चम्बल नदी के किनारे स्थित।

6. कुम्भा महल

  • राजपूत स्थापत्य कला का उत्कृष्ट नमूना।
  • महाराणा कुम्भा द्वारा निर्मित।

7. फतेहसागर महल

  • कुम्भा महल से थोड़ी दूरी पर स्थित।
  • ऐतिहासिक महत्त्व का स्थान।

8. पद्मिनी महल

  • चित्तौड़ दुर्ग के भीतर स्थित।
  • रानी पद्मिनी की कहानियों से जुड़ा।
  • इसके जलाशय में पद्मिनी की छवि दिखने का उल्लेख।

9. सतबीस जैन देवरी

  • कुल 27 जैन मंदिरों का समूह।
  • निर्माण काल: 11वीं शताब्दी।

10. कुम्भ स्वामी मंदिर

  • निर्माण: महाराणा कुम्भा (1449 ई.)।
  • वास्तुशिल्प का अद्भुत उदाहरण।

11. चल-फिर शाह की दरगाह

  • चित्तौड़ शहर में स्थित।
  • सूफी संत चल-फिर शाह की स्मृति में।

लोक संस्कृति और कला

तुर्रा-कलंगी ख्याल

  • स्थान: घोसुण्डी (चित्तौड़)।
  • संगीत आधारित लोक नाट्य।
  • हिंदू और मुस्लिम कलाकार भाग लेते हैं।
  • शुरुआत: तुकनगीर और शाहअली द्वारा।

घोसुण्डी का शिलालेख

  • वैष्णव धर्म के प्रारंभिक प्रमाण।
चित्तौड़गढ़ के मुख्य दर्शनीय स्थल

चित्तौड़गढ़ के मुख्य दर्शनीय स्थल

1. कुंभश्याम मंदिर (सूर्यमंदिर)

चित्तौड़ दुर्ग के अंदर स्थित है।
वास्तुकला और धार्मिक महत्व के लिए प्रसिद्ध।

2. कालिका माता मंदिर

चित्तौड़गढ़ का प्राचीन मंदिर।
देवी कालिका को समर्पित।

3. समिद्धेश्वर मंदिर

चित्तौड़ दुर्ग में स्थित है।
शैव संप्रदाय का प्रमुख धार्मिक स्थल।

4. विजय स्तम्भ (चित्तौड़)

निर्माण: महाराणा कुम्भा (1440-1448 ई.)।
शिल्पी: जैता, नापा, पोमा, पूंजा।
विशेषताएं:

  • 9 मंजिला, ऊंचाई 122 फीट।
  • "भारतीय मूर्तिकला का विश्वकोष" कहा जाता है।
  • राजस्थान पुलिस और माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, अजमेर का प्रतीक चिह्न।
  • डाक टिकट जारी: 15 अगस्त 1949 (राजस्थान की पहली इमारत)।
  • कर्नल टॉड ने इसे कुतुब मीनार से श्रेष्ठ बताया।
  • फर्ग्यूसन ने इसकी तुलना रोम के टार्जन टावर से की।
  • तीसरी मंजिल पर अरबी में "अल्लाह" 9 बार लिखा हुआ।

5. भैंसरोड़गढ़

उपनाम: राजस्थान का वैल्लोर।
राजस्थान का दूसरा जल दुर्ग।
चम्बल नदी के किनारे स्थित।

6. कुम्भा महल

राजपूत स्थापत्य कला का उत्कृष्ट नमूना।
महाराणा कुम्भा द्वारा निर्मित।

7. फतेहसागर महल

कुम्भा महल से थोड़ी दूरी पर स्थित।
ऐतिहासिक महत्त्व का स्थान।

8. पद्मिनी महल

चित्तौड़ दुर्ग के भीतर स्थित।
रानी पद्मिनी की कहानियों से जुड़ा।
इसके जलाशय में पद्मिनी की छवि दिखने का उल्लेख।

9. सतबीस जैन देवरी

कुल 27 जैन मंदिरों का समूह।
निर्माण काल: 11वीं शताब्दी।

10. कुम्भ स्वामी मंदिर

निर्माण: महाराणा कुम्भा (1449 ई.)।
वास्तुशिल्प का अद्भुत उदाहरण।

11. चल-फिर शाह की दरगाह

चित्तौड़ शहर में स्थित।
सूफी संत चल-फिर शाह की स्मृति में।

लोक संस्कृति और कला

तुर्रा-कलंगी ख्याल

स्थान: घोसुण्डी (चित्तौड़)।
संगीत आधारित लोक नाट्य।
हिंदू और मुस्लिम कलाकार भाग लेते हैं।
शुरुआत: तुकनगीर और शाहअली द्वारा।

घोसुण्डी का शिलालेख

वैष्णव धर्म के प्रारंभिक प्रमाण।

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भौगोलिक परिदृश्य

भौगोलिक परिदृश्य

• भौगोलिक स्थिति

राजस्थान के दक्षिणी भाग

• नदियाँ

  • बनास
  • गम्भीरी
  • बामनी (ब्राह्मणी)
  • ओराई
  • गुंजाली
  • कजमाली
  • शेवान
  • बेड़च

• चम्बल नदी

जानापाव की पहाड़ी मध्यप्रदेश से उद्गम होता है।
चित्तौड़गढ़ जिले में चौरासीगढ़ के समीप राजस्थान में प्रवेश करती है।
राज्य की एकमात्र नदी जो अंतर्राज्यीय सीमा का निर्माण करती है। (राजस्थान व मध्यप्रदेश के मध्य)

इस नदी पर बांध

  • गांधीसागर बांध (मध्य प्रदेश)
  • राणा सागर बांध (चित्तौड़गढ़)
  • जवाहरसागर बांध (कोटा)
  • कोटा बैराज बाँध (कोटा)

जलप्रपात

इस नदी पर भैसरोड़गढ़ के निकट चूलिया जलप्रपात (18 मीटर) बनाया गया है। यह राज्य का सबसे ऊँचा जलप्रपात है।

त्रिवेणी संगम

चम्बल, बनास, सीप का त्रिवेणी संगम रामेश्वरम् (सवाई माधोपुर) में है। जिसे मीणाओं का प्रयागराज कहते है।

• मिट्टी

लाल-काली मिश्रित मिट्टी पाई जाती है।

• सिंचाई परियोजनाएँ

  • गम्भीरी
  • औराई
  • वागन
  • बस्सी
  • भूपाल सागर आदि

• राणा प्रताप सागर बाँध

यह बाँध चम्बल नदी पर रावतभाटा में स्थित है।
भराव क्षमता की दृष्टि से राज्य का सबसे बड़ा बांध है।

• खनिज

  • पन्ना
  • हीरा
  • अभ्रक
  • सीसा
  • जस्ता

• केसरपुरा की खदाने

हीरा-पट्टी

• जल विद्युत ऊर्जा

राणा प्रताप सागर बाँध चम्बल घाटी विद्युत परियोजना।
43 मेगावाट की 4 इकाईयाँ कार्यरत है।
कुल 172 मेगावाट विद्युत उत्पादन।

• उद्योग

  • सीमेंट उत्पादन की दृष्टि से यह जिला राजस्थान में प्रथम स्थान पर है।
  • पहली चीनी मिल यहाँ भोपाल सागर में 'द मेवाड़ शुगर मिल्स लिमिटेड' के नाम से वर्ष 1932 में स्थापित की गई थी।
  • चंदेरिया में जिंक स्मेल्टर प्लांट स्थित है।

• भैसरोड़गढ़ अभयारण्य

चम्बल व बामनी नदी का संगम

• धौक के वृक्षों की प्रधानता

यहाँ एक मृगवन भी स्थित है जो वन विभाग द्वारा संचालित है। इसकी स्थापना 1988 में की गई।

• जीव-जंतु

काला हिरण, चीतल, नीलगाय आदि विचरण करते हुए देखे जा सकते हैं।

गुहिल वंश का इतिहास

गुहिल वंश का इतिहास

गुहिल वंश का परिचय

गुहिल वंश राजस्थान के मेवाड़ क्षेत्र में स्थापित एक प्राचीन और प्रसिद्ध राजवंश था। इसकी स्थापना 566 ई. में गुहादित्य द्वारा की गई। इस वंश के राजाओं का राजतिलक भीलों द्वारा किया जाता था। मेवाड़ के राजाओं को 'हिन्दुआ सूरज' कहा जाता था। अबुल फजल ने इन राजाओं को 'नोशेखा आदिल की संतान' बताया।

प्रमुख शासक और उनकी उपलब्धियाँ

बप्पा रावल

  • कालभोज के गुरु - हारित ऋषि
  • राजधानी - नागदा
  • एकलिंग जी के मंदिर का निर्माण करवाया।
  • गुहिल वंश के वास्तविक संस्थापक माने जाते हैं।

अल्लट (आलू रावल)

  • राजधानी - आहड़ (उदयपुर)
  • हूण राजकुमारी हरियादेवी से विवाह किया, जो राजस्थान का पहला अंतर्राष्ट्रीय विवाह था।
  • नौकरशाही का गठन किया और वराह मन्दिर का निर्माण करवाया।

जैत्रसिंह (1213-1253 ई.)

  • चित्तौड़ को राजधानी बनाया।
  • 1222-23 ई. में भूताला के युद्ध में दिल्ली सुलतान इल्तुतमिश को पराजित किया।
  • 'हम्मीर मदमर्दन' ग्रंथ में भूताला युद्ध का वर्णन है।

तेजसिंह (1258-1269)

  • मेवाड़ में चित्रकला की शुरुआत हुई।
  • 1260 ई. में श्रावक प्रतिक्रमणसूत्र चूर्णि, मेवाड़ का पहला चित्रित ग्रंथ, चित्रकार - कमलचन्द्र

रावल रतनसिंह

  • रावल शाखा के अंतिम राजा।
  • पत्नी - पद्मिनी, जिनका वर्णन 'पद्मावत' ग्रंथ में किया गया है।
  • 1303 ई. में अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के दौरान चित्तौड़ पर जौहर हुआ।

राणा हम्मीर (1326-1364 ई.)

  • सिसोदिया वंश के संस्थापक।
  • 'विषमघाटी पंचानन' की कीर्ति स्तम्भ प्रशस्ति में महिमा।
  • मेवाड़ का उद्धारक माना जाता है।
मेवाड़ का इतिहास

मेवाड़ का इतिहास

सारंगपुर का युद्ध (1437 ई.)

राणा कुम्भा और मुहम्मद खिलजी प्रथम के मध्य लड़ा गया। राणा कुम्भा विजय हुए और विजय के उपलक्ष्य में विजयस्तम्भ का निर्माण करवाया।

चंपानेर की संधि (1456 ई.)

यह संधि गुजरात के राजा कुतुबुद्दीन और मालवा के राजा महमूद खिलजी प्रथम के बीच हुई।

बदनौर का युद्ध (1457)

यह युद्ध ब्यावर जिले में हुआ। इसमें राणा कुंभा ने मालवा के महमूद खिलजी प्रथम और कुतुबुद्दीन ऐबक को हराया।

राणा रायमल (1473-1509)

  • पत्नी: श्रृंगारी देवी
  • श्रृंगारी देवी ने चित्तौड़गढ़ में घोसुण्डी बावड़ी का निर्माण करवाया।

पृथ्वीराज सिसोदिया

  • राणा रायमल के बड़े पुत्र
  • उड़ना राजकुमार के नाम से प्रसिद्ध
  • कुम्भलगढ़ दुर्ग में 12 खम्भों की छतरी बनी है।

राणा सांगा (संग्रामसिंह) (1509-1528)

  • जन्म: 12 अप्रैल 1482
  • राणा सांगा के शरीर पर 80 घाव थे।
  • उपाधि: सैनिकों का भग्नावशेष, मानवों का खण्डहर

महत्वपूर्ण युद्ध

  • खातौली (1517): राणा सांगा व इब्राहिम लोदी के बीच। राणा सांगा विजयी।
  • बाड़ी (1518): राणा सांगा व इब्राहिम लोदी के सेनापतियों के बीच।
  • गागरोन (1519): राणा सांगा व मुहम्मद खिलजी द्वितीय के मध्य।
  • बयाना (1527): राणा सांगा व बाबर के मध्य। राणा सांगा विजयी।
  • खानवा (1527): राणा सांगा व बाबर के बीच। बाबर ने तोपों का प्रयोग कर विजय प्राप्त की।

राणा प्रताप (1572-1597)

  • जन्म: 9 मई 1540, कुम्भलगढ़ दुर्ग
  • बचपन का नाम: कीका
  • उपाधियाँ: मेवाड़ केसरी, हल्दीघाटी का शेर
  • 1559 में उदयपुर नगर की स्थापना की।

महाराणा प्रताप के गुरु और सहयोगी

  • गुरु: राघवेन्द्र
  • दरबारी कवि: चक्रपाणि मिश्र
  • राज्याभिषेक: 28 फरवरी 1572 को गोगुन्दा (उदयपुर)

अकबर के दूत और समझौते के प्रयास

  1. जलालखाँ – सितम्बर 1572
  2. मानसिंह प्रथम – जून 1573
  3. भगवंत दास – सितम्बर 1573
  4. टोडरमल – दिसम्बर 1573

प्रमुख युद्ध और घटनाएँ

हल्दीघाटी का युद्ध (18 जून 1576)

  • स्थान: खमनौर, राजसमंद
  • पक्ष:
    • राणा प्रताप (सेनापति: पूंजा भील)
    • मानसिंह प्रथम (सेनापति: आसफ खाँ)
  • विशेषताएँ:
    • इसे “हाथियों का युद्ध” कहा गया।
    • राणा प्रताप का हाथी: रामप्रसाद
    • मानसिंह का हाथी: मरदाना
    • राणा प्रताप का घोड़ा: चेतक
    • राणा प्रताप घायल हुए तो झाला बीदा ने नेतृत्व संभाला।
    • कर्नल जेम्स टॉड: “मेवाड़ की थर्मोपल्ली”
    • अबुल फजल: “खमनौर का युद्ध”
    • बदायूनी: “गोगुन्दा का युद्ध”

कुम्भलगढ़ का युद्ध (1578)

  • राणा प्रताप और अकबर के सेनापति शाहबाज खाँ के बीच।
  • विजेता: शाहबाज खाँ

दिवेर का युद्ध (1582)

  • पक्ष:
    • राणा प्रताप और अमरसिंह प्रथम
    • अकबर के सेनापति सुल्तान खाँ और जगन्नाथ कच्छवाह
  • परिणाम: राणा प्रताप और अमरसिंह विजयी

महत्वपूर्ण स्थान

  • मायरा की गुफा (कोल्यारी गाँव): राणा प्रताप का शस्त्रागार।
  • मथीन (उदयपुर): सेना के ठहरने का स्थान।

उत्तराधिकारी और अन्य महाराणा

महाराणा अमरसिंह प्रथम (1597-1620)

  • राणा प्रताप के पुत्र।
  • मेवाड़-मुगल संधि: 5 फरवरी 1615 को जहाँगीर के साथ।

महाराणा कर्णसिंह (1620-28)

  • अमरसिंह के पुत्र।
  • जगमंदिर निर्माण प्रारंभ।

महाराणा जगतसिंह प्रथम (1628-52)

  • कर्णसिंह के पुत्र।
  • जगदीश मंदिर का निर्माण।
  • स्वर्ण तुलादान किया।

महाराणा राजसिंह (1652-80)

  • औरंगजेब के खिलाफ जजिया कर का विरोध।
  • माथा तोड़ युद्ध: औरंगजेब के हमले के समय 20 मेवाड़ी सरदार शहीद हुए।
  • संस्कृति: धींगा गवर मेला और तलवारों की गैर की शुरुआत।

महाराणा जयसिंह (1680-98 ई.):

  • जयसमंद झील का निर्माण (गोमती नदी का जल रोककर)।
  • कृष्णा विहार बाग का निर्माण उदयपुर में।

महाराणा अमरसिंह द्वितीय (1698-1710 ई.):

  • मेवाड़, मारवाड़, और आमेर रियासतों के बीच देबारी समझौता
  • सामंतों और जागीरदारों के लिए पहली बार नियम बनाए।
  • दुर्गादास राठौड़ को रामपुरा की जागीर दी और रामपुरा का हाकिम नियुक्त किया।

महाराणा संग्रामसिंह द्वितीय (1710-34 ई.):

  • हुरड़ा सम्मेलन आयोजित करने की योजना बनाई।
  • सहेलियों की बाड़ी और वैद्यनाथ प्रशस्ति का निर्माण कराया।

महाराणा जगतसिंह द्वितीय (1734-51 ई.):

  • हुरड़ा सम्मेलन 17 जुलाई, 1734 को आयोजित किया।
  • इनके समय मराठों ने मेवाड़ में कर वसूला

महाराणा हम्मीर सिंह (1778 ई.):

  • मराठा रानी अहिल्या बाई होल्कर का आक्रमण
  • बंदूक की नली फटने से निधन

महाराणा भीमसिंह (1778-1828 ई.):

  • दानी शासक के रूप में प्रसिद्ध।
  • 1818 ई. में अंग्रेजों के साथ सहायक संधि
  • 1807 में गिंगोली का युद्ध

महाराणा जवानसिंह (1828-38 ई.):

  • डाकन प्रथा पर रोक लगाने का प्रयास
  • नेपाल के महाराजा राजेन्द्र विक्रमशाह ने मेवाड़ की यात्रा की।

महाराणा स्वरूपसिंह (1842-61 ई.):

  • स्वरूपशाही सिक्कों का प्रचलन।
  • 1853 में डाकन प्रथा पर पूर्ण प्रतिबंध
  • 1861 में सती प्रथा पर रोक
  • 1857 की क्रांति में अंग्रेजों का समर्थन।

महत्वपूर्ण घटनाएँ और व्यवस्थाएँ:

  • मेवाड़ में सामाजिक सुधारों का क्रम राणा स्वरूपसिंह के शासन में प्रमुख रहा।
  • सती प्रथा और डाकन प्रथा जैसी कुप्रथाओं पर रोक लगाने के प्रयास।
  • अंग्रेजों के साथ संधि और सहयोग।

महाराणा शम्भुसिंह (1861-74 ई.):

  • महाराणा स्वरूप सिंह के पुत्र
  • अंग्रेजों ने इन्हें ‘ग्रांड कमाण्डर स्टार ऑफ इण्डिया’ की उपाधि प्रदान की।

महाराणा सज्जनसिंह (1874-84 ई.):

  • ठाकुर शक्तिसिंह के पुत्र
  • इनके दरबारी कवि श्यामलदास ने ‘वीर विनोद’ नामक ग्रंथ लिखा, जो मेवाड़ का ऐतिहासिक दस्तावेज है।
  • ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया ने इन्हें केसर-ए-हिन्द की उपाधि प्रदान की।

महाराणा फतेहसिंह (1884-1921 ई.):

  • सज्जनसिंह के उत्तराधिकारी
  • छप्पनिया अकाल (1899 ई.) उनके शासनकाल की प्रमुख घटना थी (विक्रम संवत 1956)।
  • 1903 ई. में एडवर्ड सप्तम के दिल्ली दरबार में भाग लेने जा रहे थे, लेकिन केसरी सिंह बारहठ ने इन्हें ‘चेतावनी रा चुंगट्या’ के माध्यम से रोका।
  • इनके समय में बिजोलिया किसान आंदोलन हुआ, जो राजस्थान के किसान आंदोलनों का अग्रदूत माना जाता है।
  • 1921 में अंग्रेजों ने राजकार्य उनसे लेकर राजकुमार भूपाल सिंह को सौंप दिया।

महाराणा भूपालसिंह (1930-1948 ई.):

  • फतेह सिंह के पुत्र और मेवाड़ के अंतिम महाराणा।
  • राजस्थान के एकीकरण (18 अप्रैल, 1948) के समय, उन्हें संयुक्त राजस्थान के राजप्रमुख नियुक्त किया गया।
  • वह राजस्थान के एकमात्र महाराज प्रमुख बने।
  • अपाहिज अवस्था में भी उन्होंने राज्य का कुशल संचालन किया।

महत्वपूर्ण घटनाएँ और योगदान:

  1. सामाजिक सुधार और साहित्यिक योगदान:
    • श्यामलदास का ‘वीर विनोद’ मेवाड़ के इतिहास के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण ग्रंथ है।
  2. राजनीतिक घटनाएँ:
    • छप्पनिया अकाल और बिजोलिया किसान आंदोलन ने उनके समय को यादगार बनाया।
  3. राजस्थान का एकीकरण:
    • भूपालसिंह ने राजस्थान के एकीकरण में प्रमुख भूमिका निभाई और आधुनिक राजस्थान के निर्माण का मार्ग प्रशस्त किया।

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