आज के आर्टिकल में हम राजस्थान के नवसृजित जिले चुरू के बारे में विस्तार से जानेंगे। राजस्थान के चुरू जिले से सम्बन्धी महत्वपूर्ण जानकारी जैसे- जिले का क्षेत्रफल, भौगोलिक स्थिति, विधानसभा क्षेत्र, चुरू जिले का मानचित्र, जिले की सीमा, District Map, District History Culture & Geography का विस्तार से अध्ययन करेंगे।
चूरू, राजस्थान का एक प्रमुख जिला है, जो थार मरुस्थल में स्थित है। इसकी स्थापना 1620 में हुई थी और यह ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। चूरू का किला, सलासर बालाजी मंदिर और तालछापर अभयारण्य जैसे स्थल यहां के प्रमुख आकर्षण हैं। जिले का मौसम अत्यधिक गर्म होता है, जहाँ गर्मियों में तापमान 50°C तक पहुँच सकता है। चूरू कृषि के लिए प्रसिद्ध है और यहां कई सिंचाई परियोजनाएं जैसे चौधरी कुंभाराम लिफ्ट नहर और आपणी परियोजना चल रही हैं। यहाँ की प्रमुख फसलें गेहूं, बाजरा और गन्ना हैं। चूरू का सांस्कृतिक धरोहर समृद्ध है और यहाँ विभिन्न मेले और धार्मिक आयोजन होते रहते हैं।
District विधान सभा सीटे
विधान सभा क्षेत्र
सुजानगढ़
सादुलपुर
रतनगढ़
चूरू
तारानगर
सरदारशहर
जिले का भौगोलिक-प्रशासनिक परिचय
चूरू
- चांदी के गोटे लगाने वाला यह किला ऐतिहासिक गौरव का प्रतीक है।
ददरेवा
- गोगा जी की जन्म स्थली और उनकी समाधि यहां स्थित है।
तालछापर वन्यजीव अभयारण्य
- काले हिरणों के लिए प्रसिद्ध यह अभयारण्य वन्यजीव संरक्षण का एक महत्वपूर्ण केंद्र है।
सालासर बालाजी मंदिर
- हनुमान जी का प्रसिद्ध मंदिर, जिसका निर्माण मोहनदास ने किया।
- राजस्थान का पहला सहकारी क्षेत्र का मिल्क प्लांट यहां स्थापित है।
सुजानगढ़
- वेंकटेश्वर मंदिर, दक्षिण शैली में निर्मित।
- दादाबाड़ी चौपड़ की हवेलियां और सुजानगढ़ झील पर्यटकों को आकर्षित करती हैं।
सादुलपुर
- इष्टधूणी बालाजी मंदिर यहां स्थित है।
राजगढ़
- स्टील किंग लक्ष्मी निवास मित्तल की जन्म स्थली।
आर्थिक और प्राकृतिक धरोहरें
चूरू क्षेत्र में सहकारी क्षेत्र और कृषि आधारित उद्योगों का विकास हुआ है। वन्यजीव संरक्षण में भी यह जिला आगे है
District History Culture & Geography || ..... Jila Darshn 2024
धार्मिक स्थल और आयोजन
- सालासर बालाजी मंदिर: यहां मूंछ-दाढ़ी वाले हनुमानजी की पूजा होती है। प्रमुख मेला चैत्र पूर्णिमा पर भरता है।
- तिरुपति बालाजी मंदिर: दक्षिण भारतीय स्थापत्य शैली में बना यह मंदिर 1994 में भैरोंसिंह शेखावत द्वारा उद्घाटित हुआ।
- ददरेवा: गोगाजी की शीर्ष मेड़ी है, जहां भाद्रपद कृष्ण नवमी को बड़ा मेला लगता है। गोगाजी को हिंदू और मुस्लिम दोनों आराध्य मानते हैं।
स्थापत्य धरोहर
- सुराणा हवेली: शेखावटी का हवामहल, जिसमें 1100 दरवाजे और खिड़कियां हैं।
- मालजी का कमरा: फ्रांसीसी स्थापत्य शैली में 1920 में सेठ मालचंद द्वारा निर्मित।
- चूरू का किला: ठाकुर कुशलसिंह द्वारा 1739 में निर्मित। 1814 में बीकानेर के महाराजा सुरतसिंह के आक्रमण के दौरान चांदी के गोले चलाने की घटना प्रसिद्ध है।
- अन्य हवेलियां: रामनिवास हवेली, खेमका हवेली, पारख हवेली, और दानचंद चौपड़ा की हवेली स्थापत्य का सुंदर उदाहरण हैं।
सांस्कृतिक धरोहर
- कबूतरी नृत्य: चूरू का प्रसिद्ध लोक नृत्य।
- चंदन की कलाकारी: चूरू के शिल्प में खास पहचान रखती है।
- धर्म स्तूप: इसमें भगवान कृष्ण, महावीर, बुद्ध, गुरु नानक, और शंकराचार्य की मूर्तियां हैं।
संग्रहालय और विशेष आयोजन
- नहाटा संग्रहालय: सरदारशहर में स्थित संग्रहालय।
- सिक्ख मेला (सहवा): कार्तिक पूर्णिमा पर सिक्ख धर्म से संबंधित सबसे बड़ा मेला।
लोक संस्कृति और शोध संस्थान
- चूरू में स्थित लोक संस्कृति नगर श्री शोध संस्थान स्थानीय कला और संस्कृति के संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
प्रमुख सिंचाई परियोजनाएँ
चौधरी कुंभाराम लिफ्ट नहर
- इसे नोहर-साहवा लिफ्ट नहर भी कहा जाता है।
- इंदिरा गांधी नहर परियोजना से पानी लेकर चूरू के सूखे क्षेत्रों में सिंचाई के लिए इसका उपयोग किया जाता है।
आपणी परियोजना
- जर्मनी की सहायता से शुरू हुई यह परियोजना चूरू, झुंझुनूं और हनुमानगढ़ जिलों को पेयजल उपलब्ध कराती है।
राजीव गांधी सिद्धमुख-नोहर परियोजना
- यह परियोजना चूरू जिले की तारानगर तहसील को सिंचाई सुविधाएं प्रदान करती है।
चूरू-बिसाऊ जल प्रदाय योजना
- इस योजना का लाभ चूरू और झुंझुनूं जिलों को मिलता है।
तालछापर अभयारण्य और जल प्रबंधन
- तालछापर अभयारण्य काले हिरणों और कुरजां पक्षियों के लिए प्रसिद्ध है।
- यहाँ की मिट्टी रेतीली है, लेकिन जल संरक्षण के प्रयास सीढ़ीनुमा कुओं और जलाशयों के माध्यम से किए गए हैं।
विशेषताएँ
- चूरू में कोई नदी नहीं बहती, जिससे जल स्रोतों पर निर्भरता बढ़ जाती है।
- यहाँ की झीलों में सुजानगढ़, तालछापर और पडिहारा रण प्रमुख हैं।
- चूरू का जलवायु तापांतर सबसे अधिक होने के लिए जाना जाता है।
चूरू का इतिहास
चूरू की स्थापना 1620 ई. में चुहड़ जाटों द्वारा की गई थी। यह जिला राजस्थान के उत्तरी हिस्से में स्थित है और इसे “गेटवे ऑफ थार डेजर्ट” के रूप में भी जाना जाता है।
दूधवा खारा आन्दोलन (1944-45)
यह आन्दोलन चूरू में ठाकुर सुरजमल सिंह द्वारा अत्यधिक कर लगाने के विरोध में हुआ था। इस आन्दोलन का नेतृत्व हनुमान सिंह ने किया, और मघाराम वैद्य के निर्देशन में इस आन्दोलन को बढ़ावा मिला।
महान खिलाड़ी
- मेजर ध्यानचंद: भारतीय हॉकी के महान खिलाड़ी, जिन्होंने रियो पैरा-ओलम्पिक 2016 में स्वर्ण पदक जीता और 2020 टोक्यो पैरा-ओलम्पिक में रजत पदक हासिल किया।
- कृष्णा पूनियां: 2004 में दोहा एशियाड ओलम्पिक में डिस्कस थ्रो में कांस्य पदक जीतने वाली कृष्णा पूनियां ने 2011 में भारत सरकार से पद्म श्री पुरस्कार प्राप्त किया। वे चूरू के शार्दुलपुर से विधानसभा सदस्य भी हैं।
गुरु द्रोणाचार्य
चूरू के गोपालपुरा (जिसे द्रोणपुर भी कहते हैं) में गुरु द्रोणाचार्य की तपोस्थली स्थित है। यह स्थान धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व रखता है।
कर्नल किशन सिंह राठौड़
कर्नल राठौड़ को भारत सरकार द्वारा महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था। वे भारतीय सेना के वीरता पुरस्कार प्राप्त करने वाले एक प्रमुख अधिकारी थे।
कांगड़ा काण्ड
1946 में रतनगढ़ (चूरू) में कांगड़ा काण्ड हुआ था, जो बीकानेर प्रजामण्डल से जुड़ा था। इस घटना ने क्षेत्रीय राजनीतिक माहौल को प्रभावित किया।
इन ऐतिहासिक घटनाओं और व्यक्तित्वों ने चूरू के सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य को आकार दिया।